बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
सांस्कृतिक विलम्बना की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रतिपादन आगबर्न ने 1922 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'सोशल चेंज' में किया। तभी से यह धारणा समाजशास्त्रियों में अति लोकप्रिय हो गई और कुछ समय के लिए ऐसा लगा कि सामाजिक परिवर्तन के रहस्य का पता लग गया है। किन्तु बाद में इसकी कटु आलोचना हुई और कुछ आलोचकों ने तो इसे कृत्रिम व काल्पनिक तक कहा। सच तो यह है कि सांस्कृतिक विलम्बना की धारणा में दोष है किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि आगबर्न ने इसके द्वारा समाजशास्त्रीय चिन्तन को समृद्ध किया, इस धारणा से अति गतिशील समाजों की अनेक घटनाओं पर प्रकाश पड़ा।
आगबर्न संस्कृति व सभ्यता में अन्तर नहीं करता है वरन् मानता है कि जो कुछ समाज में मिलता है वह संस्कृति है, सामाजिक विरासत है। इसे दो भागों में विभाजित करता है (1) भौतिक संस्कृति (2) अभौतिक संस्कृति। भौतिक संस्कृति के उदाहरण हैं मकान, मशीन, फर्नीचर। अभौतिक संस्कृति के उदाहरण हैं प्रथा, परम्परा, धर्म व कलायें। संस्कृति के इन दोनों भागों में परस्पर सम्बन्ध मिलता है। अतः जब एक भाग में परिवर्तन होता है तो दूसरा भाग भी परिवर्तित होता है। आगबर्न के अनुसार परिवर्तन भौतिक पक्ष में पहले होता है और तेजी से होता है। अभौतिक संस्कृति में भी परिवर्तन होता है किन्तु बाद में और धीमी गति से। इस कारण भौतिक संस्कृति परिवर्तित हो आगे बढ़ जाती है किन्तु अभौतिक संस्कृति पिछड़ जाती है। इसी पिछड़ेपन को आगबर्न ने सांस्कृतिक विलम्बना कहा है।
आगबर्न ने सांस्कृतिक विलम्बना का अर्थ स्पष्ट करते हुये लिखा है- "संस्कृति के सह-सम्बन्धित भागों में असमान गति से परिवर्तन होने के कारण उनमें तनाव उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में मन्द गति से परिवर्तित हुए भाग को ही विलम्बना कहते हैं क्योंकि यह भाग दूसरे से पीछे रह जाता है।"
"The strain that exists between two correlated parts of culture that change at unequal rate of speed may be interpreted as lag in the part that is changing at the slowest rate for the one lags behind the other."
- Ogburn
जिसबर्ट ने सांस्कृतिक विलम्बना को स्पष्ट करते हुए कहा है: "सांस्कृतिक विलम्बना का सार यह है कि वह समाज के दो से अधिक उन भागों में मिलने वाला असामंजस्य है जो सम्बन्धित व साथ- साथ रहते हैं और विभिन्न मात्रा में असामंजस्य को जन्म देते हैं। इसका परिणाम संगठन में अव्यवस्था होती है। सांस्कृतिक विलम्बना का सिद्धान्त और अधिक स्पष्ट हो जाता है यदि कुछ उदाहरणों पर विचार किया जाय।' आगबर्न ने लिखा है कि मान लीजिये उद्योग और शिक्षा में घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों ही संस्कृति के भाग हैं। यदि उद्योग में परिवर्तन तेजी से होता है और शिक्षा में परिवर्तन मन्द गति से होता है, तो पिछड़ाव उत्पन्न होता है। इस पिछड़ाव को ही सांस्कृतिक विलम्बना कहा जायेगा। जब तक यह पिछड़ाव चलेगा तब तक असामंजस्य की दशा मानी जायेगी। यदि इस असामंजस्य को अधिक समय तक चलने दिया तो यह समाज के अस्तित्व को वास्तविक चुनौती होगी।
पहले आगर्न ने यही कहा था कि प्रायः भौतिक से अभौतिक ही पिछड़ता है क्योंकि नई-नई खोजों व आविष्कारों का प्रभाव इसी भाग में पहले होता है किन्तु बाद में उसने यह स्वीकार कर लिया कि कभी-कभी अभौतिक से भौतिक भी पिछड़ सकता है। सच तो यह है कि पिछड़ाव अभौतिक व भौतिक पक्षों के अन्तर्गत भी हो जाता है। भारत में मिलने वाली विलम्बना के कुछ उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है। हमने मोटर, रेल, हवाई जहाज, अपना लिए किन्तु अब भी प्रथाओं व परम्पराओं में प्राचीनता व मध्ययुग की छाप है। यहाँ भौतिक से अभौतिक अंग पिछड़ा है। हम कई क्षेत्रों में आधुनिकतम आदर्श व सिद्धान्त * अपना रहे हैं किन्तु उससे सम्बन्धित भौतिक संस्कृति में आवश्यक परिवर्तन नहीं कर पा रहे हैं। जैसे समाजवाद व प्रजातंत्र का आदर्श तो अपना लिया किन्तु भौतिक क्षेत्र में असमानता पर आधारित बातों को मान रहे हैं। जाति से चिपके हुए हैं। अभौतिक संस्कृति के अंगों में पिछड़ाव श्रमिक कानूनों में मिलता है। हमने अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन के कानूनों को मान लिया है किन्तु उन्हीं के अनुसार देश के श्रमिक कानून नहीं बदले। देश में आने-जाने के द्रुतगामी साधन तो अपना लिये गए जैसे कार, बस एवं ठेला आदि किन्तु इनके लिये सड़कें चौड़ी नहीं की या इनके रखने के लिए गैरेज की व्यवस्था नहीं की गई। यह भौतिक क्षेत्र में ही विलम्बना हुई। जिसबर्ट ने विलम्बनाएं कई प्रकार की बताई हैं। इनमें प्रमुख हैं - * (1) सांस्कृतिक विलम्बना (नैतिकता, कला व दर्शन में), (2) सभ्यता की विलम्बना (टेक्नोलॉजी व अर्थ में). (3) सभ्यता व संस्कृति में विलम्बना (कानून व नैतिकता में), (4) अन्य विलम्बनाएँ। आगबर्न ने आलोचना के आधार पर कुछ संशोधन इस सिद्धान्त में 1957 में किये।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
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- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
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- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
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